बुधवार, 29 सितंबर 2010

श्री विष्‍णु चालीसा | नमो विष्णु भगवान खरारी | Shri Vishnu Chalisa Lyrics in Hindi and English

श्री विष्‍णु चालीसा | नमो विष्णु भगवान खरारी | Shri Vishnu Chalisa Lyrics in Hindi and English

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दोहा
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विष्णु सुनिए विनय 
सेवक की चितलाय
कीरत कुछ वर्णन करूं 
दीजै ज्ञान बताय
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चौपाई
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नमो विष्णु भगवान खरारी
कष्ट नशावन अखिल बिहारी
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी
त्रिभुवन फैल रही उजियारी
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सुन्दर रूप मनोहर सूरत
सरल स्वभाव मोहनी मूरत
तन पर पीताम्बर अति सोहत
बैजन्ती माला मन मोहत
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शंख चक्र कर गदा बिराजे
देखत दैत्य असुर दल भाजे
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे
काम क्रोध मद लोभ न छाजे
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सन्तभक्त सज्जन मनरंजन
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन
दोष मिटाय करत जन सज्जन
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पाप काट भव सिन्धु उतारण
कष्ट नाशकर भक्त उबारण
करत अनेक रूप प्रभु धारण
केवल आप भक्ति के कारण
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धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा
तब तुम रूप राम का धारा
भार उतार असुर दल मारा
रावण आदिक को संहारा
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आप वाराह रूप बनाया
हरण्याक्ष को मार गिराया
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया
चौदह रतनन को निकलाया
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अमिलख असुरन द्वन्द मचाया
रूप मोहनी आप दिखाया
देवन को अमृत पान कराया
असुरन को छवि से बहलाया
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कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया
मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया
भस्मासुर को रूप दिखाया
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वेदन को जब असुर डुबाया
कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया
मोहित बनकर खलहि नचाया
उसही कर से भस्म कराया
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असुर जलन्धर अति बलदाई
शंकर से उन कीन्ह लड़ाई 
हार पार शिव सकल बनाई
कीन सती से छल खल जाई
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सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी
बतलाई सब विपत कहानी
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी
वृन्दा की सब सुरति भुलानी
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देखत तीन दनुज शैतानी
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी
हना असुर उर शिव शैतानी
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तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे
हिरणाकुश आदिक खल मारे
गणिका और अजामिल तारे
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे
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हरहु सकल संताप हमारे
कृपा करहु हरि सिरजन हारे
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे
दीन बन्धु भक्तन हितकारे
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चहत आपका सेवक दर्शन
करहु दया अपनी मधुसूदन
जानूं नहीं योग्य जब पूजन
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन
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शीलदया सन्तोष सुलक्षण
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण
करहुं आपका किस विधि पूजन
कुमति विलोक होत दुख भीषण
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करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण
कौन भांति मैं करहु समर्पण
सुर मुनि करत सदा सेवकाई
हर्षित रहत परम गति पाई
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दीन दुखिन पर सदा सहाई
निज जन जान लेव अपनाई
पाप दोष संताप नशाओ
भव बन्धन से मुक्त कराओ
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सुत सम्पति दे सुख उपजाओ
निज चरनन का दास बनाओ
निगम सदा ये विनय सुनावै
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै
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श्री विष्‍णु चालीसा | नमो विष्णु भगवान खरारी | Shri Vishnu Chalisa Lyrics in Hindi and English

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Dohā
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Viṣhṇu sunie vinaya 
Sevak kī chitalāya
Kīrat kuchh varṇan karūan 
Dījai jnyān batāya
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Chaupāī
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Namo viṣhṇu bhagavān kharārī
Kaṣhṭa nashāvan akhil bihārī
Prabal jagat mean shakti tumhārī
Tribhuvan fail rahī ujiyārī
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Sundar rūp manohar sūrata
Saral svabhāv mohanī mūrata
Tan par pītāmbar ati sohata
Baijantī mālā man mohata
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Shankha chakra kar gadā birāje
Dekhat daitya asur dal bhāje
Satya dharma mad lobh n gāje
Kām krodh mad lobh n chhāje
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Santabhakta sajjan manaranjana
Danuj asur duṣhṭan dal ganjana
Sukh upajāya kaṣhṭa sab bhanjana
Doṣh miṭāya karat jan sajjana
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Pāp kāṭ bhav sindhu utāraṇa
Kaṣhṭa nāshakar bhakta ubāraṇa
Karat anek rūp prabhu dhāraṇa
Keval āp bhakti ke kāraṇa
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Dharaṇi dhenu ban tumahian pukārā
Tab tum rūp rām kā dhārā
Bhār utār asur dal mārā
Rāvaṇ ādik ko sanhārā
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Āp vārāh rūp banāyā
Haraṇyākṣha ko mār girāyā
Dhar matsya tan sindhu banāyā
Chaudah ratanan ko nikalāyā
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Amilakh asuran dvanda machāyā
Rūp mohanī āp dikhāyā
Devan ko amṛut pān karāyā
Asuran ko chhavi se bahalāyā
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Kūrma rūp dhar sindhu mazāyā
Mandrāchal giri turat uṭhāyā
Shankar kā tum fanda chhuḍa़āyā
Bhasmāsur ko rūp dikhāyā
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Vedan ko jab asur ḍubāyā
Kar prabandha unhean ḍhuḍhavāyā
Mohit banakar khalahi nachāyā
Usahī kar se bhasma karāyā
*
Asur jalandhar ati baladāī
Shankar se un kīnha laḍa़āī 
Hār pār shiv sakal banāī
Kīn satī se chhal khal jāī
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Sumiran kīn tumhean shivarānī
Batalāī sab vipat kahānī
Tab tum bane munīshvar jnyānī
Vṛundā kī sab surati bhulānī
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Dekhat tīn danuj shaitānī
Vṛundā āya tumhean lapaṭānī
Ho sparsha dharma kṣhati mānī
Hanā asur ur shiv shaitānī
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Tumane dhruv prahalād ubāre
Hiraṇākush ādik khal māre
Gaṇikā aur ajāmil tāre
Bahut bhakta bhav sindhu utāre
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Harahu sakal santāp hamāre
Kṛupā karahu hari sirajan hāre
Dekhahuan maian nij darash tumhāre
Dīn bandhu bhaktan hitakāre
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Chahat āpakā sevak darshana
Karahu dayā apanī madhusūdana
Jānūan nahīan yogya jab pūjana
Hoya yagna stuti anumodana
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Shīladayā santoṣh sulakṣhaṇa
Vidit nahīan vratabodh vilakṣhaṇa
Karahuan āpakā kis vidhi pūjana
Kumati vilok hot dukh bhīṣhaṇa
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Karahuan praṇām kaun vidhisumiraṇa
Kaun bhāanti maian karahu samarpaṇa
Sur muni karat sadā sevakāī
Harṣhit rahat param gati pāī
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Dīn dukhin par sadā sahāī
Nij jan jān lev apanāī
Pāp doṣh santāp nashāo
Bhav bandhan se mukta karāo
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Sut sampati de sukh upajāo
Nij charanan kā dās banāo
Nigam sadā ye vinaya sunāvai
Paḍhaai sunai so jan sukh pāvai
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शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

श्री कृष्ण चालीसा || Shri Krishna Chalisa ||



दोहा

वंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज॥

चौपाई

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन,
जय वसुदेव देवकी नन्दन।
जय यशोदा सुत नन्द दुलारे,
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

जय नटनागर नाग नथइया,
कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया।
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो,
आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरि टेरी,
होवे पूर्ण विनय यह मेरी।
आओ हरि पुनि माखन चाखो,
आज लाज भारत की राखो॥

गोल कपोल चिबुक अरुणारे,
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे।
रंजित राजिव नयन विशाला,
मोर मुकुट बैजन्ती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे,
कटि किंकणी काछन काछे।
नील जलज सुन्दर तनु सोहै,
छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै॥

मस्तक तिलक अलक घुंघराले,
आओ कृष्ण बासुरी वाले।

करि पय पान, पूतनहिं तारयो,
अका बका कागा सुर मारयो॥

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला,
भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला।
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई,
मूसर धार वारि वर्षाई॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो,
गोवर्धन नखधारि बचायो।
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई,
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो,
कोठि कमल जब फूल मंगायो।
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हे,
चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हे॥

करि गोपिन संग रास विलासा,
सबकी पूरण करि अभिलाषा।
केतिक महा असुर संहारियो,
कंसहि केस पकडि  दै मारियो॥

मात-पिता की वंन्दि छुड़ाई,
उग्रसेन कहं राज दिलाई।
महि से मृतक छहों सुत लायो,
मातु देवकी शोक मिटायो॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी,
लाये षट दस सहस कुमारी।
दे भमहिं तृणचीर संहारा,
जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मारयो,
भक्तन के तब कष्ट निवारियो।
दीन सुदामा के दुख टारयो,
तंदुल तीन मूठि मुख डारयो॥


प्रेम के साग विदुर घर मांगे,
दुर्योधन के मेवा त्यागे।
लखी प्रेम की महिमा भारी,
ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

मारथ के पारथ रथ हांके,
लिए चक्र करि नहिं बल थाके।
निज गीता के ज्ञान सुनाये,
भक्तन हृदय सुधा वर्षाये॥

मीरा थी ऐसी मतवाली,
विष पी गई बजा कर ताली।
राणा भेजा सांप पिटारी,
शालिग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो,
उरते संशय सकल मिटायो।
तव शत निन्दा करि तत्काला,
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

जबहिं द्रोपदी टेर लगाई,
दीनानाथ लाज अब जाई।
तुरतहि वसन बने नन्दलाल,
बढ़े चीर भये अरि मुह काला॥

अस अनाथ के नाथ कन्हैया,
डूबत भंवर बचावत नइया।
सुन्दरदास आस उर धारी,
दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो,
क्षमहुबेगि अपराध हमारो।
खोलो पट अब दर्शन दीजै,
बोलो कृष्ण कन्हैया की जय॥

दोहा

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करे उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल, लहै पदारथ चारि॥

चित्र www-acad.sheridanc.on.ca से साभार

शनिवार, 21 अगस्त 2010

श्री शिव चालीसा || जय गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Jay Ganesh Girija Suvan || Jay Girijapati Deen Dayala || Shri Shiv Stuti

श्री शिव चालीसा || जय गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Jay Ganesh Girija Suvan || Jay Girijapati Deen Dayala || Shri Shiv Stuti

(चित्र गूगल से साभार)

दोहा

जय गणेश गिरिजा सुवन, 

मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, 

देहु अभय वरदान॥

चौपाई

जय गिरिजापति दीनदयाला,

सदा करत सन्तन प्रतिपाला।

भाल चन्द्रमा सोहत नीके,

कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये,

मुण्डमाल तन छार लगाये।

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे,

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु कि हवे दुलारी,

वाम अंग सोहत छवि न्यारी।

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी,

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहैं तहं कैसे,

सागर मध्य कमल हैं जैसे।

कार्तिक श्याम और गणराऊ,

या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा,

तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा।

किया उपद्रव तारक भारी,

देवन सब मिलि तुमहि जुहारी॥

तुरत षड़ानन आप पठायउ,

लव निमेष महं मारि गिरायउ।

आप जलंधर असुर संहारा,

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई,

सबहिं कृपा कर लीन बचाई।

दानिन महं तुम सम कोई नाहीं,

सेवक अस्तुति करत सदा ही॥

वेद नाम महिमा तव गाई,

अकथ अनादि भेद नहिं पाई।

प्रगटी उदधि मंथन में ज्वाला,

जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्हीं दया तहं करी सहाई,

नीलकण्ठ तब नाम कहाई।

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा,

जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी,

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखे जोई,

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर,

भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।

जै जै जै अनन्त अविनासी,

करत कृपा सबही घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै,

भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो,

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो,

संकट से मोहि आन उबारो,

मातु पिता भ्राता सब कोई,

संकट में पूछत नहीं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी,

आय हरहुं मम संकट भारी।

धन निर्धन को देत सदा ही,

जो कोई जाचें वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करो तिहारी,

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।

शंकर हो संकट के नाशन,

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगि यति मुनि ध्यान लगावै,

नारद शारद शीश नवावै।

नमो नमो जय नमो शिवायै,

सुर ब्रह्‌मादिक पार न पाए॥

जो यह पाठ करे मन लाई,

तापर होत हैं शम्भु सहाई।

दुनिया में जो हो अधिकारी,

पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्रहीन इच्छा कर कोई,

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।

पंडित त्रयोदशी को लावे,

ध्यान पूर्वक होम करावे॥


त्रयोदशी व्रत करे हमेशा,

तन नहिं ताके रहे कलेशा।

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे,

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावै,

अन्त वास शिवपुर में पावै।

कहै अयोध्या आस तुम्हारी,

जानि सकल दुख हरहु हमारी॥

दोहा

नित्त नेम कर प्रातः ही, 

पाठ करौ चालीसा।

तु मेरी मनोकामना, 

पूर्ण करो जगदीशा॥


मगसर छठि हेमन्त ऋतु, 

संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहिं, 

पूर्ण कीन कल्याण॥

रविवार, 8 अगस्त 2010

आरती श्री शिव जी की || Aarti Shri Shiv Ji Ki || जय शिव ओंकारा || Jay Shiv Onkara || Shri Shiv Stuti || Shiv Ratri Special

आरती श्री शिव जी की || Aarti Shri Shiv Ji Ki || जय शिव ओंकारा || Jay Shiv Onkara || Shri Shiv Stuti || Shiv Ratri Special

(चित्र गूगल से साभार)

जय शिव ओंकारा, हर शिव ओंकारा,
ब्रह्‌मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा।


एकानन चतुरानन पंचानन राजै
हंसानन गरुणासन वृषवाहन साजै।


दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहै,
तीनों रूप निरखते त्रिभुवन मन मोहे।


अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी,
चन्दन मृगमद चंदा सोहै त्रिपुरारी।


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे,
सनकादिक ब्रह्‌मादिक भूतादिक संगे।


कर मध्ये च कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी,
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी।


ब्रह्‌मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।


त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे॥

बुधवार, 4 अगस्त 2010

श्री राम जी की आरती || आरती श्री रघुवर जी की ||Aarti Shri Raghuvar Ji Ki || Shri Ram Chandra Ji Ki Aarti || Shri Ram Stuti

श्री राम जी की आरती || आरती श्री रघुवर जी की ||Aarti Shri Raghuvar Ji Ki || Shri Ram Chandra Ji Ki Aarti || Shri Ram Stuti


आरती कीजै श्री रघुवर जी की,
सत चित आनन्द शिव सुन्दर की॥


दशरथ तनय कौशल्या नन्दन,
सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन॥


अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन,
मर्यादा पुरुषोत्तम वर की॥


निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि,
सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि॥


हरण शोक-भय दायक नव निधि,
माया रहित दिव्य नर वर की॥


जानकी पति सुर अधिपति जगपति,
अखिल लोक पालक त्रिलोक गति॥


विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति,
एक मात्र गति सचराचर की॥


शरणागत वत्सल व्रतधारी,
भक्त कल्प तरुवर असुरारी॥


नाम लेत जग पावनकारी,
वानर सखा दीन दुख हर की॥