श्री हरसू ब्रह्म चालीसा || Shri Harsu Brahm Chalisa || हरसू ब्रह्म चैनपुर कैमूर || Harsu Brahm Chainpur Kaimur || Harsu Brahm Maharaj ji || हरसू ब्रह्म रूप अवतारी Harsu Brahm Rup Avatari
बाबा हरसू ब्रह्म के चरणों का करि ध्यान।
चालीसा प्रस्तुत करूं पावन यश गुण गान॥
जेहि पूजत नित नर अरु नारी॥१॥
जन मंगल हित शिला स्वरूपा॥ २॥
ब्रह्म धाम मंह राजत सोई ॥३॥
प्रकट भये बन ब्रह्म प्रतापी॥४॥
सोइ शिव प्रकट ब्रह्म के रूपा॥५॥
हरसू ब्रह्म हुए विखयाता॥६॥
ब्रह्म रूप धरि प्रकटेउ सोई॥७॥
हरसू ब्रह्म सोई अन्तर्यामी॥८॥
शित निर्लेप अमान एक रस॥९॥
जहां विराजत ब्रह्म निरन्तर॥१०॥
प्रमुदित होत निरन्तर जन-मन॥११॥
आज मिटावत जन-मन त्रासा॥१२॥
कष्ट मिटाकर जन-भय हरते॥१३॥
दनुज वृत्ति कुल घालक तुम हो॥१४॥
आवे सभय शरण तकि सोई॥१५॥
चरण गहे नित बारहिं बारा॥१६॥
जीवन भर तव यश नित गावै॥१७॥
देखत कबहुं हंसे फिर रोवै॥१८॥
भूत पिशाच ग्रस्त उर होई॥१९॥
करत विनय तुमको पहिचाने॥२०॥
भूत-पिशाच विकल होई भागे॥२१॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवत॥२२॥
करि उपचार मनुज जब हारा॥२३॥
श्रमित-भ्रमित जन मन से हारे॥२४॥
नियत काल तक व्रत अनुसरई॥२५॥
बांधे तुमहि प्रेम की डोरी॥२६॥
कष्ट मिटे लौटे प्रमुदित घर॥२७॥
भक्ति भाव श्रद्धा उर भरहीं॥२८॥
जानहुं भाव कुभाव निरन्तर॥२९॥
जब तुमको उन मध्य बिठावे॥३०॥
तब होइहहिं प्रकाश उर अंतर॥३१॥
अनुभव गम्य विवेक सहारा॥३२॥
ब्रह्म रूप तब होइहहिं योगी॥३३॥
हवन-यज्ञ जहं होत निरंतर॥३४॥
ध्यान मग्न अविचल अन्तर्मन॥३५॥
होकर द्वैत भाव से न्यारा॥३६॥
पूर्ण होत अभिलाष शीघ्रतर॥३७॥
विनवत चरण परत प्रभु तोरे॥३८॥
गुप्त रहस्य शीघ्र ही खोले॥३९॥
छोड़ देह तब चले पराई॥४०॥
परम तेज मय बसहुं तुम, भक्तन के उर धाम॥