मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा Shri Vindheshwari Chalisa || Vindhyavasini Chalisa || नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब || Namo Namo Vindheshwari

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा Shri Vindheshwari Chalisa || Vindhyavasini Chalisa || नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब || Namo Namo Vindheshwari


दोहा

नमो नमो विन्ध्येश्वरी, 
नमो नमो जगदम्ब।
सन्तजनों के काज में 
करती नहीं विलम्ब।

जय जय विन्ध्याचल रानी, 
आदि शक्ति जग विदित भवानी।
सिंहवाहिनी जय जग माता, 
जय जय त्रिभुवन सुखदाता।

कष्ट निवारिणी जय जग देवी, 
जय जय असुरासुर सेवी।
महिमा अमित अपार तुम्हारी, 
शेष सहस्र मुख वर्णत हारी।

दीनन के दुख हरत भवानी, 
नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी।
सब कर मनसा पुरवत माता, 
महिमा अमित जग विख्याता।

जो जन ध्यान तुम्हारो लावे, 
सो तुरतहिं वांछित फल पावै।
तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी, 
तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी।

रमा राधिका श्यामा काली, 
तू ही मातु सन्तन प्रतिपाली।
उमा माधवी चण्डी ज्वाला, 
बेगि मोहि पर होहु दयाला।

तू ही हिंगलाज महारानी, 
तू ही शीतला अरु विज्ञानी।
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता, 
तू ही लक्ष्मी जग सुख दाता।

तू ही जाह्नवी अरु उत्राणी, 
हेमावती अम्बे निरवाणी।
अष्टभुजी वाराहिनी देवी, 
करत विष्णु शिव जाकर सेवा।

चौसठ देवी कल्यानी, 
गौरी मंगला सब गुण खानी।
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी, 
भद्रकाली सुन विनय हमारी।

वज्र धारिणी शोक नाशिनी, 
आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी।
जया और विजया बैताली, 
मातु संकटी अरु विकराली।

नाम अनन्त तुम्हार भवानी, 
बरनै किमि मानुष अज्ञानी।
जापर कृपा मातु तव होई, 
तो वह करै चहै मन जोई।

कृपा करहुं मोपर महारानी, 
सिद्ध करिए अब यह मम बानी।
जो नर धरै मात कर ध्याना, 
ताकर सदा होय कल्याना।

विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै, 
जो देवी का जाप करावै।
जो नर कहं ऋण होय अपारा, 
सो नर पाठ करै शतबारा।

निश्चय ऋण मोचन होइ जाई, 
जो नर पाठ करै मन लाई।
अस्तुति जो नर पढ़ै पढ़ावै, 
या जग में सो अति सुख पावै।

जाको व्याधि सतावे भाई, 
जाप करत सब दूर पराई।
जो नर अति बन्दी महं होई, 
बार हजार पाठ कर सोई।

निश्चय बन्दी ते छुटि जाई, 
सत्य वचन मम मानहुं भाई।
जा पर जो कछु संकट होई, 
निश्चय देविहिं सुमिरै सोई।

जा कहं पुत्र होय नहिं भाई, 
सो नर या विधि करे उपाई।
पांच वर्ष सो पाठ करावै, 
नौरातन में विप्र जिमावै।

निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी, 
पुत्र देहिं ताकहं गुण खानी।
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै, 
विधि समेत पूजन करवावै।

नित्य प्रति पाठ करै मन लाई, 
प्रेम सहित नहिं आन उपाई।
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा, 
रंक पढ़त होवे अवनीसा।

यह जनि अचरज मानहुं भाई, 
कृपा दृष्टि तापर होइ जाई।
जय जय जय जग मातु भवानी, 
कृपा करहुं मोहिं पर जन जानी।
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